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किस्से कहानियाँ

अन्धों की सूची में महाराज गोनू झा की कहानी Andhon Ki Soochi Mein Maharaj Gonu Jha Story in Hindi

अन्धों की सूची में महाराज गोनू झा की कहानी Andhon Ki Soochi Mein Maharaj Gonu Jha Story in Hindi

गोनू झा के साथ एक दिन मिथिला नरेश अपने बाग में टहल रहे थे। उन्होंने यूँ ही गोनू झा से पूछा कि देखना और दृष्टि-सम्पन्न होना एक ही बात है या अलग-अलग अर्थ रखते हैं ?

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गोनू झा में बातें करने की अद्भुत सूझ थी । उन्होंने कहा-“महाराज, देखना एक क्रिया भर है, जैसे आप मुझे देख रहे हैं किन्तु दृष्टि में सूझ भी होती है जिससे भविष्य के लिए मार्गदर्शन मिल सकता है ।”

मिथिला नरेश को गोनू झा की बात पसन्द आई। उन्होंने गोनू झा से फिर पूछा-“मिथिला में दृष्टि-सम्पन्न कितने लोग होंगे ?”

गोनू झा ने तत्परता से कहा-“महाराज ! दृष्टिवान् व्यक्ति विरल होते हैं । आसानी से मिलते कहाँ हैं ?”

लेकिन महाराज का जिज्ञासु भाव बना रहा। उन्होंने पूछा-“फिर भी, कुछ तो होंगे ?”

गोनू झा ने महाराज से कहा-“मुझे कुछ दिनों की मोहलत दें तो मैं आपको ठीक -ठीक बता सकूँगा कि मिथिला में दृष्टि-सम्पन्न हैं भी या नहीं।”

महाराज शान्त हो गए । दूसरे दिन महाराज घोड़े पर सवार होकर गोनू झा के गाँववाले मार्ग से गुजर रहे थे। उन्होंने एक अजीब माजरा देखा । उन्होंने देखा कि सड़क के बीचोबीच कुछ लोग एक व्यक्ति को घेरे खड़े हैं । वे घोड़े से उतरकर भीड़ में गए यह देखने कि आखिर वहाँ हो क्या रहा है । भीड़ में शामिल होते ही उन्होंने पूछा-“यहाँ क्या हो रहा है ? मार्ग अवरुद्ध क्यों है ?”

तभी भीड़ के बीच में बैठे व्यक्ति ने उनसे कहा -” अपना नाम बताओ।”

अन्धों की सूची में महाराज गोनू झा की कहानी Andhon Ki Soochi Mein Maharaj Gonu Jha Story in Hindi

महाराज ने देखा नाम बताने के लिए कहने वाला व्यक्ति कोई और नहीं, गोनू झा हैं जो सड़क के मध्य में एक खाट बुनने में लगे हैं और पास में ही एक कॉपी रखी है । जैसे ही उनसे कोई कुछ पूछता है, वैसे ही वे उससे उसका नाम पूछकर उस कॉपी में दर्ज कर लेते हैं ।

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मिथिला नरेश को कुछ समझ में नहीं आया कि आखिर गोनू झा यह क्या कर रहे हैं । उन्होंने गोनू झा से पूछ ही लिया-“यह क्या पंडित जी ? आप यहाँ इस हाल में, बीच सड़क पर बैठकर यह क्या कर रहे हैं ?”

उनकी ओर देखकर गोनू झा ने कॉपी उठाई और उसमें कुछ लिखने लगे ।

महाराज ने फिर पूछा – “अरे पंडित जी, कुछ तो बोलिए यह क्या लिख रहे हैं ?”

गोनू झा अपने स्थान से उठे और महाराज के कान में धीरे से फुसफुसाए -” खाते में आपका नाम दर्ज कर रहा था । “ “खाते में ? किस तरह के खाते में ?” महाराज ने पूछा। गोनू झा बोले-“आपने ही तो मिथिला के दृष्टि-सम्पन्न लोगों की संख्या बताने को कहा है, तो मैंने अपने गाँव से ही पड़ताल आरम्भ कर दी है । जल्दी ही पूरे मिथिला का आँकड़ा तैयार हो जाएगा ।”

महाराज ने जिज्ञासावश पूछा-“आपने खाते में मेरा नाम दर्ज किया है, वह कैसा खाता है ? मैं कुछ समझ नहीं पाया ?” गोनू झा ने कहा-“महाराज, यह खाता दृष्टिहीनों का है । इसमें उन्हीं लोगों का नाम शामिल है जिन्होंने मुझे खाट बुनते देखकर भी पूछा-आप क्या कर रहे हैं ? और क्षमा करें महाराज, आप भी अपवाद नहीं हैं ।”

महाराज को गोनू झा के कहने का अर्थ समझ में आ गया और उन्होंने गोनू झा से कहा -“बस, पंडित जी ! अब मुझे अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया । अब आप यह खाता पोथी बंद करें और अपनी सामान्य दिनचर्या में लगें ।”

महाराज की बातें सुनकर गोनू झा अनायास ही मुस्कुरा दिए ।

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