Gazab Adda
अजब गज़ब दुनिया की हिंदी खबरे

महादेव पारवती हिन्दी कहानी Mahade Parvati Story in Hindi

महादेव पारवती हिन्दी कहानी Mahade Parvati Story in Hindi

एक बर की बात सै। पारबती महादे तैं बोल्ली – महाराज, धरती पै लोग्गाँ का क्यूकर गुजारा हो रह्या सै? मनै दिखा कै ल्याओ।

महादे बोल्ले- पारबती, इन बात्ताँ मैं के धरया सै?

हमारे इस कहानी को भी पड़े : खर्ची पूजा हिन्दी कहानी

अडै सुरग मैं रह, अर मोज लूट। धरती पै आदमी घणे दुखी सैं। तू किस-किस का दुख बाँटेगी।

पारबती बोल्ली- महाराज, मैं नाँ मान्नू। मैं तै अपणी आँख्या तै देक्खूँगी। संद्यक देक्खे बिना पेट्टा क्यूकर भरै?

महादे बोल्ले- तै चाल पारबती। देख धरती की दुनियादारी। न्यूँ कह कै वे दोन्नूँ अपणे नादिया पै बैठ, थोड़ी हाण मैं आ पोंहचे धरती पै। उन दिनां गंगाजी का न्हाण था। पारबती बोल्ली- महाराज, मैं बी गंगाजी न्हाऊंगी। गंगा न्हाण का बड़ा फळ हो सै। जो गंगा न्हाले उननै थम मुकती दे द्यो सो। मर्याँ पाच्छै वो आदमीं सिदा सुरग मैं जावै। अड़ै आए-ऊए दो गोत्ते बी मार ल्याँ गंगा जी मैं।

हमारे इस कहानी को भी पड़े : रहस्य की बात हिन्दी कहानी

महादे बोल्ले- पारबती, लोग हमनैं पिछाण लैंगे। अक न्यूँ कराँ, दोन्नूँ अपणा-अपणा भेस बदल ल्याँ। न्यूँ कह कै दोनुवां नै मरद-बीर का भेस भर लिया। भेस बदलकै दोन्नूँ चाल पड़े, गंगाजी कैड़।

राह मैं पारबती नैं देख्या दुनियाँ ए गंगाजी न्हाण जा सै। कोए गाड्डी जोड़ रहे, तै कोए मँझोल्ली, कोए रेहडू , तै कोए पाहयाँ पाहयाँ चाल्ले जाँ सै। लुगाई गंगाजी के गीत गांवती जाँ सै। अक जड़ बात या थी, सारी ए खलखत पाट्टी पड़ै थी गंगाजी के राह म्हं।

महादेव पारवती हिन्दी कहानी Mahade Parvati Story in Hindi

पारबती बोल्ली- महाराज, धरती पै तै घणा एक धरम-करम बध रहया सै। देक्खो नाँ, टोळ के टोळ आदमी गंगाजी न्हाण जाण लागरे। मेरै तै एक साँस्सै सै। थम कहो थे-जो गंगा न्हावेगा वो सिधा सुरग मैं जागा। जै ये सारे न्हाणिये सुरग मैं आगे तै सुरग मैं तै तिल धरण की जघाँ बी नाँ रहैगी। सुरग मैं तै खड़दू मचजैगा।

महादे हँस्से अर बोल्ले- पारबती, तूँ तै भोळी की भोळी ए रही। ये सारे आदमी गंगाजी न्हाण कोन्या आए। कोए तै मेला-ठेला देक्खण आया सै। कोए खेत-क्यार के काम तैं बच कै आया सै। कोए-कोए अपणा बड्डापण जितावण ताँहीं आया सै। कोए-कोए अपणा मैल काट्टण आया सै। कोए बेट्टे माँगण ताँही आया सै, तै कोए पोत्ते माँगण ताँही। कोए बेट्टी नैं परणा कै सुख की साँस लेण आया सै। कोए अँघाई करण ताँही आया सै।

गंगाजी न्हाणियाँ तै इनमैं उड़द पै सफेद्दी जितणा कोए-कोए ढूँढ्या पावैगा।
महादे की बात सुण कै पारबती बोल्ली- महाराज, थम तै मेरी बात नैं न्यूँ एँ टाळो सो। कदे न्यूँ बी होय करै?
महादे बोल्ले- तूँ मेरी बात नैं बिचास कै देख ले, जै मेरी बात न्यूँ की न्यूँ साच्ची नाँ लिकड़ै तै।
पारबती बोल्ली- महाराज, बात नैं बिचास्सो। महादे बोल्ले- बिचास ले।

इतणी कह कै महादे नैं कोड्ढी का रुप धारण कर लिया अर पारबती रुपमती लुगाई बणगी। राह चालते नहाणियाँ नैं वो कोड्ढ़ी अर लुगाई देक्खी। बीरबान्नी तै हाथ मल मल कै रहगी। देख दुनियाँ मैं कितणा कु न्या सै? सुरत सी बीरबान्नी कोड्ढ़ी कै पल्लै ला दी। डूबगे इसके माई-बाप। के सारी धरती पाणी तैं भरी सै जो इसनैं जोड़ी का बर नाँ मिल्या?
कोए उनतैं अँघाई करकै लिकड़ै। कोए कहै छोडडै नैं इस कोड्ढ़ी नैं। मेरै साथ चल, राज उडाइये।

महादेव पारवती हिन्दी कहानी Mahade Parvati Story in Hindi

वा लुगाई सब आवणियाँ-जाणियाँ ताँही एक्कैं बात कहै- सै कोए इसा धरमातमाँ जो इसनैं कोड्ढी की जूण तैं छुटवादे। इसका हाथ पकड़ कै गंगीजी मैं झिकोळा लुवादे? जै कोए इसनैं गंगाजी मैं नुहादे उसका राम भला करैगा। वो दूदधाँ न्हागा अर पूत्ताँ फळैगा। गंगाजी मैं न्हात्याँ हे इस की काया पलट हो ज्यागी। सै कोए धरमातमाँ जो इसका कस्ट मेट्टै? सब महादे-पारबती की बात सुणंै अर मन मन म्हं हँस्सैं।
उस लुगाई की बात दुनियाँ सुणै पर मुंह फेर कै लीक्कड़ ज्या। जिसके हाड हाड मैं कोढ़ चूवै उसनैं कूण छूहवै।
अक जड़ बात या थी अक कोए बी उसकै हाथ लावण नैं त्यार नाँ हुआ। लाक्खाँ न्हाणियाँ डिगरग़े अर वा लुगाई न्यूँ की न्यूँ खड़ी डिडावै।

जिब भोत्तै हाण होली जिब एक धरमातमाँ उत आया। उस बिचारे नैं बी उस बीरबान्नी की गुहार सुणी। कोड्ढ़ी नैं देख कै उसका मन पसीजग्या। उसनै सोच्या- हे परमेस्सर, इसे कूण से पाप करे अक यो कोड्ढ़ी बण्या? अर कूण से आच्छे करम करे थे अक इतणी सुथरी बहू मिल्ली। उस आदमी नैं जनान्नी की सारी बात सुणी अर बोल्या- जै इसका कोढ़ गंगा मैं न्हवाए तैं मिट ज्यागा तै मैं इसका झिकोळा लगवा दयूँगा। थारा दोनुवाँ का अगत सुधर ज्यागा। तूँ न्यूँ कर, एक कान्नी तैं तै तू इसकी बाँह पकड़ और दूसरी कान्नी तै मैं थामूंगा।

उस आदमी का तै उस कोड्ढ़ी कै हाथ लाणा था अर वो तैं साँच माँच का सिबजी भोला बणकैं खड़्या होग्या,अर बोल्या- देक्ख्या पारबती! मैं तनैंं कहूँ था नाँ, अक सारे माणस गंगाजी न्हाण नहीं आंवते। लाक्खाँ मैं कोए कोए पवित्तर भा तैं गंगा न्हाण आवै सै जिसा यो आदमी लिकड़्या।

सिबजी भोळे नैं उस आदमी ताँही आसीरबाद दिया अर वै दोन्नूँ अंतरध्यान होगे।

5/5 - (1 vote)
You might also like
Leave A Reply

Your email address will not be published.