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किस्से कहानियाँ

फ्योंली रौतेली हिन्दी लोक कथा Fyonli Rauteli Story in Hindi

फ्योंली रौतेली हिन्दी लोक कथा Fyonli Rauteli Story in Hindi

एक बार की बात है, सोरीकोट नाम के एक गाँव में एक बहुत ही सुंदर लड़की ‘फ्योंली रौतेली’ रहा करती थी। वह अपने पिता नागू सौरियाल की एकमात्र संतान होने के कारण बड़े प्रेम से पाली गई थी।

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प्रातः काल में, उसके पिता अपने कुल देवता की आराधना में मग्न थे और फ्योंली अपने सपनों के राजकुमार के स्वप्न मे। शंख बजता और फ्योंली की आँखैं खुलतीं। खिड़की से आती हुई धूप फ्योंली की सुंदरता को और बढ़ा रही थी। उसके बुरांश जैसे लाल होंठ ढलते हुए सूर्य की लालिमा को मात देते थे। उसके पहाड़ी नयन नक्श उसे और भी सुंदर बनाते थे।

फ्योंली उठी और अपने काले-लंबे बाल बनाकर, अपनी सोने की गगरी लेकर घर से बाहर निकली। उसकी सहेलियाँ भी उसके साथ पानी भरने आईं।

फ्योंली रौतेली हिन्दी लोक कथा Fyonli Rauteli Story in Hindi

सबने जल भरा और वापस अपने-अपने घर चली गईं लेकिन फ्योंली हर बार की तरह नहाने के लिए वहीं रुक गई। वह पानी भर ही रही थी कि उसने पानी में किसी और की भी परछाई देखी। वह पीछे मुड़ी लेकिन वहाँ कोई भी नहीं था। ऊपर की ओर देखने पर उसने पाया कि एक आकर्षक युवक पेड़ की डाल पर बैठकर फूलों की माला बना रहा है।

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उन दोनों ने एक दूसरे को देखा, फ्योंली के नेत्र झुके और गालों की लालिमा बढ़ गई। वह युवक पेड़ से उतरा और फ्योंली के पास जाकर बैठ गया। युवक ने अपना परिचय देते हुए कहा- “मेरा नाम भूपु राऊत है, क्या तुम मुझे जानती हो”? इसपर फ्योंली ने उत्तर दिया- “हाँ, तुम्हारे पिता की नज़र हमारे गाँव पर है। तुम यहाँ क्यों आए हो”? भूपु ने प्रेम और मित्रता की आस को उसके वहाँ होने का कारण बताया। उसने अपनी बाँसुरी निकाली और फ्योंली का मन मोहने के लिए बाँसुरी बजाने लगा। फ्योंली मंत्रमुग्ध होकर उसे निहारने लगी, फिर भूपु ने उसे अपने हाथों से बनाया फूलों का हार पहना दिया। फ्योंली के बालों को फूलों से सजाते हुए भूपु ने आँखों ही आँखों में फ्योंली का जन्मों तक साथ देने की कसमें खा लीं।

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सूर्य ढलने पर फ्योंली को आभास हुआ कि पूरा दिन निकल चुका है। वह घर की ओर भागी, जहाँ उसके पिता गुस्से से लाल उसकी प्रतिक्षा कर रहे थे। फ्योंली के बालों में फूल और गले में फूलों की माला देख उनका पारा और चढ़ गया। उन्होंने उससे देर होने का कारण पूछा तो फ्योंली ने उन्हें भूपु के बारे में बताया। फ्योंली के पिता ने गुस्से से आग बबूला होकर फ्योंली को भूपु से न मिलने के लिए कहा। फ्योंली बोली कि वह अपने प्राण त्याग देगी लेकिन भूपु से ही विवाह करेगी। यह सुनते ही उसके पिता ने उसे बहुत ज़ोर से धक्का दिया और फ्योंली चोट खाते हुए ज़मीन पर गिर पड़ी। फ्योंली अपने प्राण त्याग चुकी थी; उसे मरा हुआ पाकर उसके पिता को बहुत दुख हुआ। यहाँ उसके पिता आँसू बहा रहे थे, वहाँ फ्योंली इंद्रलोक पहुंच चुकी थी। सारे देवताओं को उसके लिए बुरा लगा। इसलिए इंद्र ने उसे वरदान दिया कि धरती पर उसे कोई नहीं भूलेगा, चैत्र मास में उसकी पूजा होगी और सब उसके गीत गाएंगे और कुल देवता की पूजा के समय उसे द्वारा पर रखा जाएगा।

धरती पर फ्योंली के नाम से एक पीला फूल उगा जो कि आज भी इस नाम से उत्तराखंड में प्रसिद्ध है।

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