
गोनू झा की नियुक्ति कहानी
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पूरे मिथिलांचल के नौजवानों में खलबली मची हुई थी । प्रायः हर बेरोजगार नौजवान उस प्रतियोगिता की तैयारी में जुटा हुआ था जो महाराज के दरबार में एक माह बाद आयोजित होने वाली थी ।
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महाराज ने पूरे राज्य में मुनादी करा दी थी कि उन्हें एक ऐसे सहयोगी की आवश्यकता है जो रसिक भी हो और विलक्षण बुद्धि का भी । राज्यस्तरीय प्रतियोगिता अगले माह पूर्णिमा के दिन राजदरबार में होगी।
मिथिला के नौजवानों में इस प्रतियोगिता में भाग लेने का उत्साह था । क्या पता, कहीं वे प्रतियोगिता में सफल होकर महाराज के सहयोगी बन जाएँ ! फिर तो मजा ही आ जाएगा… राज दरबार में जगह मिलेगी और महाराज का खास सहयोगी होने से समाज में प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी ।
नियत समय पर राजदरबार में प्रतियोगिता आरम्भ हुई । हजारों की संख्या में प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए युवक वहाँ जमा हुए । महाराज ने युवकों के उमड़ते सैलाब को देखकर प्रतियोगिता का स्थान राजदरबार के स्थान पर राजमहल के बाहर के मैदान में बदल दिया ।
मैदान में जब सभी प्रतियोगी एकत्रित हुए तब महाराज उनके बीच पहुँचे। मैदान के मध्य में उनके लिए चारों ओर से खुला हुआ मंच तैयार किया गया था । महाराज मंच पर पहुँचे और अपना आसन ग्रहण किया । प्रतियोगिता आरम्भ होने की घोषणा हुई ।
महाराज अपने आसन से उठे । उन्होंने ऊँची आवाज में कहा-“जैसा कि आप सभी जानते हैं कि मुझे एक ऐसे सहयोगी की आवश्यकता है जो विलक्षण बुद्धि का हो । प्रतियोगी युवाओं की बुद्धि की परीक्षा के लिए इस पद के लिए मैंने एक शर्त रखी है कि मेरा सहयोगी वही बन सकता है जो आकाश में महल का निर्माण कार्य करने या कराने में समर्थ हो । इस कार्य के लिए उसे राजकोष से मुँहमाँगी रकम और इच्छित वस्तुएँ उपलब्ध करा दी जाएँगी ।”
मैदान में सन्नाटा-सा छा गया । हजारों की संख्या में उपस्थित युवाओं को जैसे काठ मार गया ! भला आकाश में भी कोई महल बना सकता है ? प्रतियोगी मन ही मन विचार करने लगे -जरूर महाराज का दिमाग खराब हो गया है… यह कोई शर्त हुई …! अरे नौकरी देने की मंशा नहीं थी तो मुनादी क्यों कराई… ? लेकिन कुछ भी बोलने की हिम्मत उनमें नहीं थी । सभी अपने-अपने स्थान पर खड़े थे- बगलें झाँकते हुए । कुछ युवक जो मैदान के किनारे खड़े थे, वे वहाँ से खिसकने लगे ।
तभी भीड़ से एक युवक रास्ता बनाता हुआ मंच के पास पहुँचा । उस युवक ने कहा-“महाराज की जय हो ! महाराज, यदि आज्ञा दें तो मैं ‘आकाश महल’ बनाने का कार्य कर सकता हूँ किन्तु इस कार्य का आरम्भ कराने में मुझे चार माह का समय चाहिए ।”
महाराज चौंक पड़े । चौंक पड़े मैदान में खड़े हजारों प्रतियोगी युवक । सभी की आँखें मंच के पास खड़े युवक पर टिकी हुई थीं … और मंच के पास खड़ा वह युवक मुस्कुरा रहा था आत्मविश्वास से भरा हुआ ।
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महाराज अपने आसन से फिर उठे और मंच के किनारे तक चलकर आए । उन्होंने उस युवक को करीब से देखा । मंच के पास खड़ा युवक उन्हें आत्मविश्वासी लगा ।
उस युवक की आँखों में एक विशेष किस्म की चमक थी जिसे देखकर महाराज को लगा कि जरूर यह युवक अन्य प्रतियोगियों से भिन्न है । उन्होंने युवक से पूछा-“युवक ! क्या तुम विश्वासपूर्वक कह सकते हो कि आकाश में महल बना लोगे…?”
“जी हाँ, महाराज!” युवक ने संक्षिप्त उत्तर दिया ।
” तुम्हारा नाम क्या है युवक ?” महाराज ने पूछा।
“गोनू झा ।” युवक ने फिर संक्षिप्त उत्तर दिया ।
महाराज उसके साहस से प्रसन्न थे। उन्हें लग रहा था कि उन्हें जैसे सहयोगी की जरूरत है, वह मिल गया है । अपने मन में उठते विचारों को नियंत्रित रखते हुए महाराज ने गोनू झा से पूछा-“अच्छा, गोनू झा ! यदि पाँचवें महीने की पूर्णिमा से तुम्हें आकाश-महल के निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ करने के लिए कहा जाए तो क्या तुम यह कार्यारम्भ कर सकोगे ?”
” अवश्य महाराज !” गोनू झा ने उत्तर दिया ।
महाराज ने कहा “ठीक है!” और वे अपने आसन पर बैठ गए।
इसके थोड़ी ही देर बाद मंच से घोषणा हुई “चार माह बाद! पाँचवें महीने की पूर्णिमा के दिन, इसी प्रांगण में गोनू झा नामक यह मेधावी प्रतियोगी आकाश- महल का निर्माण कार्य प्रारम्भ करेगा। इस अवसर पर सभी आमंत्रित हैं ।”
इस घोषणा के बाद सभी प्रतियोगी अपने-अपने घरों को लौट गए । राज्य भर में गोनू झा नाम के उस युवक की चर्चा होने लगी। सबको लग रहा था कि यह युवक भी सिरफिरा है। जैसे महाराज ने आकाश महल के निर्माण की शर्त रखकर अपने सनकी होने का परिचय दिया है, वैसे ही गोनू झा नाम के युवक ने इस शर्त को पूरा करने की बात कहकर अपनी जान जोखिम में डाल ली है। निश्चित रूप से वह युवक इस शर्त को पूरा नहीं कर पाएगा और महाराज उसे कठोर दंड देंगे ।
इसी तरह की चर्चा में चार माह बीत गए … और पाँचवें माह की पूर्णिमा भी आ गई । राजमहल के सामने के मैदान में हजारों नर -नारी उपस्थित हो गए। प्रतियोगिता में भाग लेने आए युवक भी यह देखने के लिए उस मैदान में फिर जुटे कि गोनू झा नाम का वह युवक वहाँ आता है या नहीं और यदि वह आता है तो आकाश-महल का निर्माण कैसे शुरू कराता है । सबको देखकर आश्चर्य हुआ कि गोनू झा पहले से ही मंच के पास एक आसन पर विराजमान है।
महाराज आए । आसन पर बैठने से पहले ही वे मंच के किनारे पहँचे। उन्हें देखकर गोनू झा अपने आसन से उठे और उनका अभिवादन किया । महाराज ने पूछा -” क्यों गोनू झा ! आकाश -महल के निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ कराने के लिए तैयार हो ?”
“जी हाँ, महाराज, यदि आप आज्ञा दें …मेरे मजदूर, राजमिस्तरी सभी उचित स्थान पर प्रतीक्षा कर रहे हैं । आपकी आज्ञा मिलते ही काम शुरू हो जाएगा।” उन्होंने एक लम्बी सूची महाराज के सामने प्रस्तुत की और कहा -” महाराज, इस सूची में महल -निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री परिमाण सहित दर्ज है।” फिर उन्होंने एक बड़ा-सा कागज महाराज के हाथों में सौंपा और कहा, “और महाराज, यह प्रस्तावित आकाश-महल का नक्शा है ।”
महाराज ने कहा “ठीक है गोनू झा … अब तुम आकाश -महल का निर्माण-कार्य आरम्भ कराओ!”
गोनू झा ने अपने हाथ में एक हरे रंग की झंडी ले रखी थी । उन्होंने झंडी खोली । आसमान की ओर हाथ ऊँचा किया और जोर -जोर से झंडी हिलाने लगे । महाराज और मैदान में खड़े लोग गोनू झा को अचरज-भरी दृष्टि से देख रहे थे। गोनू झा अपना हाथ उसी तरह उठाए हुए मैदान में इधर-उधर भाग रहे थे और जोर -जोर से झंडी हिला रहे थे। उन्हें ऐसा करते देख मैदान में खड़े लोगों की हँसी छूट गई । वे हँसने लगे कि तभी आसमान से आवाजें आने लगीं-अरे ! तैयार हो जाओ! महल -निर्माण का काम शुरू करो! यह आवाज लोगों ने साफ सुनी । वे आसमान की तरफ देखने लगे । उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था । फिर उन लोगों ने सुना-आकाश से ही आवाज आ रही थीं-ईंटें लाओ! मसाला तैयार करो! पानी लाओ! इस बार इस तरह की आवाज आकाश में कई दिशाओं से आती प्रतीत हो रही थी । आवाज का शोर बढ़ रहा था, जैसे बोलने वालों की संख्या बढ़ती जा रही हो ! महाराज भी उस आवाज से चकित थे और आसमान की ओर देख रहे थे।
तभी गोनू झा ने आवाज दी -” महाराज, हमारे मजदूर और मिस्तरी काम पर तैनात हैं । कृपया सूची के मुताबिक निर्माण सामग्री उन तक पहुँचाने का प्रबंध करें ।
महाराज समझ गए कि सचमुच विलक्षण बुद्धि वाले व्यक्ति से उनका पाला पड़ा है। वे बोले-“गोनू झा ! तुमने शर्त पूरी कर दिखाई है इसलिए हम तुम्हें अपना विशेष सहयोगी नियुक्त करते हैं । अभी तुम अपने मजदूरों और मिस्तरियों को वापस ले जाओ। तुम्हारी सूची के मुताबिक सामग्री का प्रबन्ध होने पर हम आकाश-महल का कार्यारम्भ कराएँगे ! अभी रहने दो ।”
महाराज की बात सुनते ही गोनू झा ने हरी झंडी लपेटकर रख दी और अपने पास से एक दूसरी झंडी निकाली जो लाल रंग की थी । इस झंडी को निकालकर पहले की भाँति ही हवा में लहराते हुए गोनू झा दौड़ने लगे। थोड़ी ही देर में आसमान से ईंटें लाओ, मसाला तैयार करो, काम में लगो आदि आवाजें आनी बंद हो गईं । मैदान में एकत्रित लोग वापस लौट गए।
महाराज ने गोनू झा को दरबार में बुलाया । उनकी नियुक्ति हुई। महाराज के पास बैठने के लिए उनका आसन लगाया गया । महाराज ने उन्हें उनके आसन पर बैठने की आज्ञा दी । दरबार की कार्यवाही चली फिर दरबार विसर्जित हुआ ।
जब गोनू झा उठने लगे तब स्नेहपूर्वक महाराज ने उनका हाथ थामते हुए कहा -” जाने से पहले एक बात बताइए गोनू झा कि आकाश से जो आवाजें आ रही थीं, वे आवाजें कैसे आ रही थीं ? ऐसा प्रतीत हो रहा था कि हर दिशा से मजदूर आवाज लगा रहे हैं …!”
गोनू झा विनम्रता से बोले “महाराज, वे आवाजें मजदूरों की नहीं, पहाड़ी मैना और तोतों की थी जिन्हें मैंने चार महीने में प्रशिक्षित किया था । यहाँ पहुँचकर उन्हें हवा में छोड़ दिया था-वे आस- पास के पेड़ों पर बैठे थे। हरा झंडा देखकर बोलते थे और लाल झंडा देखकर चुप हो जाते थे।”
महाराज उनकी बात सुनकर हँस पड़े और देर तक हँसते रहे।