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कपिला गायें और कुम्हारिन की बेटी: कोंकणी-गोवा की लोक-कथा Kapila Gaye Aur Kumharin Ki Beti: Lok-Katha Story in Hindi

कपिला गायें और कुम्हारिन की बेटी: कोंकणी-गोवा की लोक-कथा Kapila Gaye Aur Kumharin Ki Beti: Lok-Katha Story in Hindi

तो कुम्हार ने हाथ में फावड़ा पकड़ा और वह चला जंगल की ओर। कुम्हारिन ने क्या किया कि बच्ची को गोद में लिया, टोकरी हाथ में पकड़ी और चली कुम्हार के पीछे जंगल में।

तो जंगल में जाकर कुम्हार ने अच्छी सी जमीन देखकर फावड़े से उसे खोदा और बहुत सारी मिट्टी निकाली। उस मिट्टी को कुम्हारिन ने टोकरी में भरा और सिर पर रख लिया। सिर पर टोकरी रखी तो वह नीचे झुककर बच्ची को गोद में उठा नहीं सकी। उसने कुम्हार से कहा, “अजी, थोड़ा बच्ची को उठाकर मेरी गोद में रखो।”

इसपर कुम्हार एकदम भड़का। कहने लगा—

“तुम इस बच्ची को घर लाओ या इस मिट्टी को! तुम घर आ जाओ या इधर ही रहो! मुझे उससे कोई मतलब नहीं!”

कुम्हार तिलमिलाकर पत्नी और बच्ची को वही जंगल में छोड़कर चला गया। उसके जाने के बाद कुम्हारिन ने सोचा, यदि वह मिट्टी की टोकरी घर लेकर नहीं गई, तो कुम्हार उसे पीटेगा। तो उसने क्या किया कि उस बच्ची को वहीं छोड़कर वह मिट्टी की टोकरी सिर पर लेकर घर चली गई।

उसके पीछे अकेले उस जंगल में वह बच्ची घबरा गई और उँ…आँ…उँ…आँ…करके रोने लगी। लेकिन उसका रोना सुनने के लिए कौन था उस जंगल में? वह रोती चली गई।

कपिला गायें और कुम्हारिन की बेटी: कोंकणी-गोवा की लोक-कथा Kapila Gaye Aur Kumharin Ki Beti: Lok-Katha Story in Hindi

शाम हो गई, बच्ची डर से अब ज्यादा ऊँचे स्वर में रोने लगी। तो उस ओर से भगवान् की कपिला गायें जा रही थीं। उसका रोना उनके कानों पर पड़ गया। इस घने जंगल में बच्चे की रोने की आवाज! उन्हें आश्चर्य हुआ। आवाज का सुराग लेकर वे ढूँढ़ते वहाँ पहुँच गईं।

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तो उन्होंने देखा कि एक छोटी सी बच्ची अकेले जमीन पर बैठकर जोर-जोर से रो रही है। वह दृश्य देखकर उनका दिल करुणा से भर गया।

“अरे, किस निर्दयी ने इस छोटी सी बालिका को इस जंगल में छोड़ा है? शायद कोई पत्थर दिल ही होगा!”

सभी गायों ने बड़े प्यार से उस बच्ची को चाटा। उस झुंड में एक गाय दुधारू थी। तो उसने बच्ची को अपना दूध पिलाया।

पेट भरने से और गायों के प्यार से चाटने से बच्ची का रोना थम गया, वह खेलने लगी। तब गायें उसे वहाँ छोड़कर अपने गोठ में गईं। सुबह फिर बच्ची के पास आकर उन गायों ने उसे प्यार किया, दूध पिलाया।…फिर शाम हो आई…शाम को वे वापस वहाँ आ गईं।

ऐसा कुछ समय तक चलता रहा। गाय का धारोष्ण दूध पीने से वह बच्ची बड़ी स्वस्थ हो गई। जल्दी-जल्दी बढ़ने लगी। अब वह उन गायों को ही अपनी माँएँ समझने लगी। उनका रँभाना सुनते ही वह उनकी ओर दौड़कर चली जाती और उनसे चिपकती थी। कुछ समय बाद वह और भी बड़ी हो गई और उनके पीछे-पीछे जंगल में घूमने लगी। सभी गायें उसका बहुत खयाल रखती थीं। कोई शेर-बाघ एवं और कोई जंगली जानवर आकर उसपर हमला न करे, इसलिए वे सब जंगल में वर्तुलाकार खड़ी रहकर चरती थीं और उसे उस वर्तुल में रखती थीं।

तो और भी दिन–महीने-साल गुजर गए। बच्ची अब दस साल की हो गई। उसपर सभी गायों ने सोचा, ‘अब बच्ची का जंगल में खुले रहना ठीक नहीं है।’

वे उसे अपनी गोठ (गौशाला) में लेकर आ गईं। उन्होंने बच्ची से कहा, “बेटी, अब तुम इस गोठ के अंदर ही रहना, बाहर मत निकलना। शाम को जंगल से आते वक्त हम तुम्हारे लिए खाना लाएँगी।”

बच्ची ने कहा, “हाँ, माँ।”

अब बच्ची दिनभर गोठ में ही रहती थी और शाम को आते वक्त गायें उसके लिए अच्छा-अच्छा फल लाती थीं। उसे खाकर वह खुश हो जाती।

कपिला गायें और कुम्हारिन की बेटी: कोंकणी-गोवा की लोक-कथा Kapila Gaye Aur Kumharin Ki Beti: Lok-Katha Story in Hindi

तो एक दिन हुआ क्या कि अंदर बैठे-बैठे बच्ची का दम घुटने लगा। उसने सोचा, कुछ समय के लिए क्यों न बाहर खुली हवा में जाऊँ? तो बच्ची गोठ के बाहर खड़ी हो गई। उसी समय उस तरफ से एक राक्षस जा रहा था। उसने उस बच्ची को देखा तो उसके मुँह में पानी आ गया। सोचा, यह बच्ची एकदम कोमल ककड़ी की तरह है। इसका गोश्त खाऊँ तो दिल खुश हो जाएगा! कितने दिनों से ऐसा लज्जतदार मांस नहीं खाया है।

वह बच्ची की ओर बढ़ने लगा। बच्ची ने अपनी ओर आते राक्षस को देखा तो घबरा गई। दौड़कर गोठ के अंदर चली गई और उसने दरवाजा बंद कर लिया। तब राक्षस क्रोधित हो गया। फिर भी मृदु आवाज में उसने बच्ची से कहा ,

“मेरी लाडो,…बेटी, जरा दरवाजा खोल दे।”

तो उस गोठ के नजदीक एक आम का पेड़ था। उस पेड़ ने कहा, “अरी…नहीं-नहीं…बेटी, दरवाजा नहीं खोलना। राक्षस तुझे खा जाएगा!”

पेड़ के ऐसा कहने पर राक्षस को गुस्सा आ गया। वह दौड़कर उस पेड़ के पास गया और पेड़ पर जोर से एक लात लगाई। पेड़ टूटकर नीचे गिर पड़ा। उसकी टहनियाँ इधर-उधर बिखर गईं।

फिर वह वापस गोठ के दरवाजे के पास गया और उसने बच्ची को आवाज दी—“मेरी प्यारी लाडो, जरा दरवाजा खोल दे!”

तो गोठ के नजदीक एक नारियल का पेड़ था। उस पेड़ ने कहा, “नहीं-नहीं…बेटी, दरवाजा मत खोलना! राक्षस तुझे खा जाएगा!”

बच्ची ने दरवाजा नहीं खोला तो राक्षस गुस्से से आगबबूला हो गया। दौड़कर उसने उस नारीयल के पेड़ पर दो-चार लातें मार दीं और उसे जमीन पर गिरा दिया।

अब तीसरी बार दरवाजे के पास जाकर उसने कहा, “मेरी प्यारी लाडो, जरा दरवाजा खोल दे!”

तो उस गोठ के नजदीक एक अंबाड़ी (व्यंजन के लिए उपयुक्त खट्टे स्वाद का एक फल) का पेड़ था। उस पेड़ ने कहा, “नहीं-नहीं बेटी, दरवाजा मत खोलना! राक्षस तुझे खा जाएगा!”

अब राक्षस मानो जल-भुनकर राख हो गया। वह उस अंबाड़ी के पेड़ पर लात मारने वाला ही था, इतने में उसे खयाल आ गया कि अँधेरा छाने लगा है और गायों के गोठ में वापस आने का वक्त हो गया है। उसने सोचा, यदि गायें आ गईं तो मैं मुसीबत में पड़ सकता हूँ, अक्लमंदी इसमें है कि मैं यहाँ से जाऊँ। लेकिन दूसरे दिन वापस आकर लड़की को खाने का मन में मंसूबा रखकर राक्षस वहाँ से चला गया।

राक्षस के जाने के थोड़ी देर बाद गायें वहाँ आ गईं। आते ही उनकी नाकों ने राक्षस के शरीर की गंध सूँघ ली। गोठ के बाहर उसके पाँवों की निशानियाँ भी उन्होंने देखीं। तो यहाँ कोई राक्षस आया हुआ है, इसका उन्हें यकीन हो गया। वे डर गईं… ‘हे भगवान् हमारी बच्ची सुरक्षित हो!’

सभी गायें दौड़ते हुए गोठ के दरवाजे के पास पहुँचीं। उनके पहुँचने से दरवाजा अपने आप खुल गया। सब एकदम अंदर घुसीं तो उनको बच्ची अंदर दिखाई नहीं दी। वे सब व्याकुलता से हम्मा-हम्मा करके उसे ढूँढ़ने लगीं। ढूँढ़ने के बाद बच्ची एक कोने में सहमी हुई रोती उन्होंने देखी।

तो गायें दौड़कर उसके पास गईं, उसे चाटा और पूछा, “बोलो बेटी, क्या हुआ? किसने डराया तुझे?”

बच्ची ने सब बात बता दी। सुनकर वे सब क्रोधित हो गईं, “उस राक्षस की यह हिम्मत? हमारी बेटी को खाने आए? ठहर, कल सिखाएँगे उसे सबक!”

दूसरे दिन सुबह एक भी गाय चरने जंगल नहीं गई। सब छुपकर गोठ में रहीं।

इधर राक्षस ने किया क्या कि सुबह उठकर मुँह धोया, दाँत मंजन करके उनको शान से तेज किया और बच्ची का गोश्त खाने का खयाली पुलाव मन में पकाकर वह कपिला गायों के उस गोठ के पास आ गया।

आकर उसने पहले की तरह मृदु स्वर में ही कहा, “लाडो…बेटी, जरा दरवाजा खोल दे।”

तो अंबाड़ी के पेड़ ने कहा, “नहीं-नहीं बेटी, दरवाजा मत खोलना! राक्षस तुझे खा जाएगा!”

कपिला गायें और कुम्हारिन की बेटी: कोंकणी-गोवा की लोक-कथा Kapila Gaye Aur Kumharin Ki Beti: Lok-Katha Story in Hindi

राक्षस ने दौड़कर उसके तने पर गुस्से से चार-पाँच लातें मारीं, तो उसका तना टूटकर उसके टुकड़े हो गए। इस तरह राक्षस ने गोठ के आस-पास के सब पेड़ तोड़ डाले। आखिर में उसे रोकनेवाला एक भी पेड़ नहीं बचा तो दरवाजा तोड़कर वह गोठ के अंदर घुसा। इधर वह अंदर घुसा तो उधर सभी गायें उसके अंदर आने की राह देख रही थीं। उसके अंदर पाँव रखते ही, जो गाय बच्ची को दूध पिलाती थी, उसने अपना सिंघाड़ा उसपर पहले मारा। बाद में दूसरी ने…तीसरी ने…ऐसा करके सभी गायों ने मिलकर उसकी कमर तोड़ी, हाथ-पैर तोड़े और उसको जख्मी करके दूर जंगल में फेंक दिया। जख्मी राक्षस ने सोचा, ‘सिर सलामत तो पगड़ी पचास! इसके बाद जीवन में कभी किसी बच्ची का गोश्त खाने की इच्छा नहीं रखूँगा।’

इधर राक्षस को सबक सिखाकर गायों ने बच्ची से कहा, “बेटी, अब कोई राक्षस तुझे सताने यहाँ नहीं आएगा, तुम निर्भय रहो।”

तो और कुछ दिन सुख-शांति से बीत गए। अब बच्ची बच्ची नहीं रही, एक सुंदर सी कन्या बन गई थी। अब उसका डर भी कम हो गया। गायों के जंगल में चरने के लिए जाने के बाद वह गोठ से बाहर निकलती, झरने पर जाकर स्नान करती, पंछियों का संगीत सुनती, पेड़-लताओं पर खिले सुंदर से फूल तोड़ती और उन्हें बालों में लगाती…।

एक दिन हमेशा की तरह वह झरने पर स्नान करके फूल तोड़ रही थी, तो उस तरफ से उस राज्य का राजकुँवर, जो शिकार के लिए निकला था, एक हिरन के पीछे-पीछे दौड़ता वहाँ पहुँच गया। उसने उस कन्या को देखा और उसे वह बहुत भा गई। उसने कन्या से बात करने का प्रयत्न किया तो कन्या दौड़कर गोठ में घुस गई और दरवाजा बंद कर लिया।

राजकुँवर पहली ही नजर में उस कन्या से प्यार करने लगा। वह अपने घर गया और अपनी माता को उसने अपने प्यार की बात बताई। राजमाता ने वह बात राजा को बताई। तो राजा ने कहा, “ठीक है, जैसी पुत्र की इच्छा! यदि उसे वह कन्या पसंद है, तो उसके साथ ही उसकी शादी करेंगे।”

राजा ने तुरंत प्रधान को आदेश दिया कि कुछ सिपाही साथ में लेकर उस वन में जाओ और उस कन्या को राजमहल में लेकर आओ।

राजा के आदेशानुसार प्रधान कुछ सिपाही साथ में लेकर गया और कन्या को साथ में लेकर राजमहल आ गया। कन्या की सुंदरता देखकर राजा और रानी दोनों ही प्रभावित हो गए। अपने पुत्र की पसंद की उन्होंने प्रशंसा की।

रानी ने तुरंत ही दासियों से कहकर कन्या को सुगंधित तेल और उबटन लगाकर नहलाया, उसे पहनने को अच्छे कपड़े दिए। उसे अलंकार पहनाए, उसके बाल बनाए। अब कन्या इस वेश में पहले से भी सुंदर दिखने लगी, जैसे वह स्वर्ग की अप्सरा हो!

कुछ दिन तक रानी माँ ने उसे अपनी देखभाल में राजघराने की रस्में और रिवाज की शिक्षा दी। जब वह पूरी तरह राजघराने की बहू बनने योग्य हुई तो राजकुँवर और उसका बड़ी धूमधाम से विवाह किया।

तो वह कुम्हार की लड़की अब राजा की बहू बन गई। उसके पास अब सारा सुख-चैन था। पहनने के लिए अच्छे वस्त्र थे, हीरे-जवाहरात थे, नौकर-चाकर थे, प्यार करनेवाला पति और सास-ससुर थे, लेकिन वह खुश नहीं थी। उसे अपनी गौ माताओं की बहुत याद आती थी। इसलिए सारा सुख होते हुए भी वह दुःखी थी। राजकुँवर के ध्यान में वह बात आ गई, उसने उसे पूछा, “तुम्हें क्या दुःख है? क्यों तुम ऐसी गुमसुम बैठती हो?”

उसने कहा, “मुझे मेरी माताओं के पास लेकर चलो!”

राजकुँवर ने पूछा, “कौन है तुम्हारी माता?”

“मेरी माताएँ हैं—गौयें!”

“गायें…”

राजकुमार चकित हो गया। उसपर कन्या ने उसे सारी कथा सुनाई। सुनकर उसने कहा, “ठीक है, मैं तुम्हें तुम्हारी माताओं के पास लेकर चलता हूँ।”

दूसरे ही दिन राजकुमार कन्या को, यानी अपनी पत्नी को उस जंगल में लेकर गया तो कन्या को देखकर सब गायें दौड़कर उसके पास आ गईं। कन्या भी दौड़कर उनके गले चिपक गई। गायों ने उसे ममता से चाटा, कन्या ने भी उन्हें प्यार से सहलाया। जिस कपिला गाय ने उसे अपना दूध पिलाया था, उससे तो वह बहुत देर तक चिपककर सिसकने लगी।

कुछ देर के बाद गायें उठकर जंगल में चली गईं और राजकुँवर अपनी पत्नी को लेकर राजमहल वापस आ गया। आते वक्त उसने एक काम किया, अपने सिपाहियों को वहाँ का गोठ तोड़ने का आदेश दिया।

जंगल से अपनी गौ माताओं से मिलकर आने के बाद कन्या, यानी वो कुम्हार की लड़की खुशी-खुशी अपने पति राजकुँवर के साथ रहने लगी। वह बहुत साल तक जीवित रही। उसके कई पुत्र–पौत्र हो गए।

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