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ईमानदारी का फल हिन्दी कहानी Imandari Ka Phal Story in Hindi

ईमानदारी का फल हिन्दी कहानी Imandari Ka Phal Story in Hindi

बहुत पहले की बात है एक राजा सुबह सुबह सैर करने के लिये महल से अकेला ही निकला । रास्ते में उसने देखा, एक किसान पसीने में तर-ब-तर अपने खेत में काम कर रहा है ।

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राजा ने उसके पास जाकर पूछा, ‘भाई आप इतनी मेहनत करते हो, दिन में कितना कमा लेते हो ?’ किसान ने उत्तर दिया ‘एक सोने का सिक्का।’ राजा ने पूछा ‘उस सोने के सिक्के का क्या करते हो?’ किसान ने कहा, ‘राजन ! एक चौथाई भाग मैं खुद खाता हूँ। दूसरा चौथाई भाग उधार देता हूँ। तीसरे चौथाई भाग से ब्याज चुकाता हूँ और बाकी चौथाई हिस्सा कुएँ में डाल देता हूँ।’

किसान की बात राजा की समझ में न आई। वह बोले-भाई, पहेली मत बुझाओ। साफ़-साफ़ बताओ।

किसान ने मंद-मंद मुसकराकर कहा-महाराज, बात तो साफ़ है। पहले चौथाई भाग में से मैं अपना और अपनी औरत का पेट पालता हूँ। दूसरे चौथाई हिस्से में अपने बाल-बच्चों को खिलाता हूँ, क्योंकि बुढ़ापे में वे ही हमें पालने वाले हैं। तीसरे चौथाई भाग से मैं अपने बूढ़े माँ-बाप को खिलाता हूँ, क्योंकि उन्होंने मुझे पाल-पोसकर बड़ा किया है। इसलिए मैं उनका ऋणी हूँ। इस प्रकार उनका ब्याज चुकाता हूँ। बाकी चौथाई हिस्से को मैं दान-पुण्य में लगा देता हूँ, जिससे मौत के बाद परलोक सुधर जाए।

किसान का जवाब सुनकर राजा बहुत खुश हुए। उन्होंने किसान से कहा–मुझे तुम यह वचन दो कि जब तक तुम मेरा मुँह सौ बार न देखोगे, तब तक यह बात किसी दूसरे को न बताओगे। किसान ने राजा को वैसा ही वचन दिया।

ईमानदारी का फल हिन्दी कहानी Imandari Ka Phal Story in Hindi

दूसरे दिन राजा का दरबार लगा। राजा ने दरबारियों के सामने यह सवाल रखा और पूछा-आप लोग मेरा सवाल ध्यान से सुनिए और इसका सही जवाब दीजिए। जो इसका सही जवाब देगा, उसे सौ सोने के सिक्के इनाम में दिए जाएँगे। अब सुन लीजिए। मेरा सवाल है-हमारे राज्य में एक किसान है।

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वह रोज़ एक सोने का सिक्का कमाता है। उसका एक चौथाई भाग वह खुद खाता है। दूसरा चौथाई भाग उधार देता है। तीसरे चौथाई भाग से ब्याज चुकाता है और बाकी चौथाई हिस्सा कुएँ में डाल देता है। इसका मतलब क्‍या है?

सभी दरबारी राजा का यह सवाल सुनकर मौन रह गए। कोई जवाब न दे पाया। राजा ने सभी दरबारियों को यह पहेली सुलझाने के लिए दो दिन की मुहलत दी।

राजा का एक मंत्री बड़ा ही समझदार था। उसने सोचा कि आज सुबह राजा टहलने के लिए राजधानी से बाहर गए थे, वहाँ पर राजा की मुलाकात किसी किसान से हुई होगी। यह सोचकर वह मंत्री दूसरे दिन सवेरे टहलते हुए राजधानी के बाहर चला गया। वहाँ पर नदी के किनारे खेत में वही किसान खेत जोत रहा था। मंत्री ने उस किसान के पास जाकर उस सवाल का जवाब पूछा।

किसान ने कहा-मैंने राजा को वचन दिया है कि जब तक मैं राजा का मुँह सौ बार न देखूँगा, तब तक मैं इस सवाल का जवाब किसी को न बताऊँगा। इसलिए मुझे माफ कीजिए। मैं इसका जवाब आपको नहीं दे सकता।

मंत्री बड़ा ही बुद्धिमान था। वह किसान की बात समझ गया। उसने उसी वक्‍त अपनी थैली में से सौ सोने के सिक्के निकालकर किसान को दिए। हर-एक सिक्‍के पर राजा का चित्र था। किसान ने सौ सिक्‍कों पर राजा का चित्र देख लिया और उस सवाल का जवाब मंत्री को बता दिया।

तीसरे दिन जब दरबार लगा, तब राजा ने वही सवाल पूछा। मंत्री ने उठकर उसका सही जवाब कह सुनाया। राजा समझ गए कि उसी किसान ने मंत्री को उनके सवाल का जवाब बता दिया है।

राजा गुस्से में आ गए। उन्होंने उस किसान को बुलवाकर पूछा-तुमने अपने बचन का पालन क्‍यों नहीं किया?

किसान ने हाथ जोड़कर कहा-महाराज, मैंने अपने वचन का पालन किया है। यह उत्तर देने से पहले मैंने सौ बार आपका चेहरा देख लिया है। ये लीजिए, आपके चेहरे वाले सौ सोने के सिक्‍के। इन पर मैंने आपका चेहरा सौ बार देख लिया, तभी तो जवाब बता दिया।

राजा किसान की ईमानदारी पर बहुत खुश हुआ। किसान ने अपने वचन का पालन किया था, इसलिए राजा ने किसान को सौ सौने के सिक्के इनाम में दिए। किसान खुशी-खुशी अपने घर चला गया।

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