
एक छह साल के बच्चे को गणित पढ़ाने वाली एक शिक्षका ने पूछा, “अगर मैं आपको एक सेब और एक सेब और एक सेब दूं, तो आपके पास आपके बैग में कितने सेब होंगे”
*कुछ पल के भीतर ही लड़के ने आत्मविश्वास से उत्तर दिया, “चार!” *
शिक्षका एक सही उत्तर (तीन) की अपेक्षा कर रहही थी। उत्तर सुनकर हताश हो गई।
“हो सकता है कि बच्चे ने ठीक नहीं सुना हो,” उसने फिर अपना प्रश्न दोहराया, “ध्यान से सुनें बेटा यह बहुत सरल है।
*अगर मैं आपको एक सेब और एक सेब और एक सेब दूं, तो आपके पास आपके बैग में कितने सेब होंगे *”
क्योंकि छात्र ने पुनः प्रयास किया, उसने अपनी उंगलियों पर फिर से गणना की,इस बार झिझकते हुए उसने उत्तर दिया, “चार ” शिक्षका के चेहरे पर निराशा छा गई।
शिक्षिका को याद आया कि लड़के को स्ट्रॉबेरी बहुत पसंद है।अतिरंजित उत्साह और टिमटिमाती आँखों से इस बार उसने पुनः पूछा … “*बेटा अगर मैं आपको एक स्ट्रॉबेरी और एक स्ट्रॉबेरी और एक स्ट्रॉबेरी देती हूं, तो आपके पास आपके बैग में कितनी होंगी *”
शिक्षका को खुश देखकर, बच्चे पर कोई दबाव नहीं था, लेकिन शिक्षका पर थोड़ा सा था।वह चाहती थी कि उसका ये नया दृष्टिकोण सफल हो जाये।
एक संकोच भरी मुस्कान के साथ, बच्चे ने उत्तर दिया, तीन शिक्षका के चेहरे पर अब विजयी मुस्कान थी। उसका दृष्टिकोण सफल हो गया था।
मन ही मन वह खुद को बधाई देना चाहती थी लेकिन एक आखिरी बात रह गई थी।एक बार फिर उसने बच्चे से पूछा, “अब अगर मैं तुम्हें एक सेब और एक सेब और एक और सेब दूं तो तुम्हारे पास तुम्हारे बैग में कितने होंगे?”
बच्चे ने तुरंत जवाब दिया “चार!”
”कैसे! मुझे बताओ कैसे ” उसने थोड़ी सख्त और चिड़चिड़ी आवाज़ में मांग की।
एक धीमी सी आवाज़ में जिसमे हिचकिचाहट थी, बच्चे ने जवाब दिया, “क्योंकि मेरे बैग में पहले से ही एक सेब है।”
इसी प्रकार जब कोई आपको, आपकी उम्मीद से अलग जवाब देता है तो यह आवश्यक नहीं है कि वही गलत हैं ; एक ऐसा कोण हो सकता है जिसे आप बिलकुल भी नहीं समझ पाए हों।
हमें विभिन्न दृष्टिकोणों की सराहना और समझना सीखना चाहिए। अक्सर, दूसरों पर अपना दृष्टिकोण थोपते हैं और फिर सोचते हैं कि क्या गलत हुआ।
अगली बार जब कोई आपको आपसे अलग दृष्टिकोण दे, तो बैठकर धीरे से पूछें “क्या आप मुझे इसे पुनः समझाने का प्रयत्न कर सकते हैं” फिर उसे पूरा सुने, उसको उसके दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करें।