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किस्से कहानियाँ

स्वर्ग से वापसी गोनू झा की कहानी Swarg Se Wapsi Gonu Jha Story in Hindi

स्वर्ग से वापसी गोनू झा की कहानी Swarg Se Wapsi Gonu Jha Story in Hindi

मिथिला महाराज के दरबार में गोनू झा का सम्मान दिनों -दिन बढ़ता जा रहा था । उनके बढ़ते प्रभाव से महाराज के दरबार के अन्य दरबारी उनसे ईष्या करने लगे थे।

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वे पीठ पीछे गोनू झा के विरुद्ध विष-वमन करते रहते मगर मुँह पर कुछ भी बोलने का साहस नहीं जुटा पाते ।

महाराज के दरबार में एक हजाम भी था जो गोनू झा से जलता था । उसने धीरे-धीरे गोनू झा से ईष्या रखनेवाले दरबारियों से दोस्ती गाँठ ली और उनका चहेता बन गया । यह हजाम बहुत चालाक और धूर्त किस्म का इनसान था । एक दिन महाराज ने गोनू झा की सराहना खुले दरबार में की । दरबारी जल- भुनकर रह गए। हजाम ऐसे ही दिन की प्रतीक्षा में था । उसने दरबारियों से कहा कि यदि आप लोग साथ दें तो मैं ऐसी जुगत भिड़ाऊँगा कि इस गोनू झा की सदा के लिए छुट्टी हो जाएगी। दरबारियों ने हजाम से वादा कर लिया कि वह जैसा कहेगा वे वैसा ही करेंगे । हजाम खुश होकर उनसे विदा लेकर अपने घर लौट गया ।

महाराज के पिता की कुछ माह पहले ही मौत हो गई थी । राजमहल के सामने ही उनकी समाधि बनाई गई थी । महाराज सुबह में स्नान आदि से निवृत्त होकर पहले तो अपने पिता की समाधि पर जाते वहाँ फूल चढ़ाते तब राजभवन पहुँचकर राज- काज में लगते । पिता की मृत्यु के बाद से उनका रोज का नियम यही था ।

स्वर्ग से वापसी गोनू झा की कहानी Swarg Se Wapsi Gonu Jha Story in Hindi

हजाम इस बात को जानता था । एक दिन जब महाराज समाधि-स्थल पुष्प अर्पित करने पहुँचे तो देखा कि एक कागज मुड़ा हुआ समाधि पर रखा हुआ है। उन्होंने उस कागज को उठाया और खोला तो पाया कि वह कागज कुछ और नहीं-पत्र है । यह पत्र उनको ही सम्बोधित कर लिखा गया है । पत्र का मजमून था कि-मेरे पुत्र । मैं जानता हूँ तुम मेरे वियोग से व्यथित हो । अब तुम्हें व्यथित होने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि मुझे स्वर्ग में स्थान मिल गया है। यहाँ मुझे किसी चीज की कोई कमी नहीं है। कमी तो केवल एक बात की कि मेरे पास कोई एक अच्छा पंडित नहीं है जो मेरे पूजन-कार्य सम्पन्न कराए। अच्छा होता कि तुम अपने दरबारी गोनू झा को मेरे पास भेज देते । उसके सीधे स्वर्ग आने का तरीका तुम्हें भेज रहा हूँ । अपने राज्य के पूर्वी श्मशान के टीले पर तुम गोनू झा को बैठाकर उस पर दो खेतों के पुआल डलवाकर आग लगवा दो । पवित्र अग्नि की लौ और धुएँ के साथ तत्काल उसकी आत्मा को सीधे स्वर्ग में प्रवेश मिल जाएगा । यह कार्य तुम यथाशीघ्र सम्पन्न कराओ! तुम्हारा पिता ।

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पत्र पढ़कर महाराज असमंजस में पड़ गए । ओह, ऐसा कैसे हो सकता है ? अब तक कभी सुना नहीं, न देखा कहीं । क्या स्वर्ग से कोई पत्र आ सकता है- मृत्युलोक में ? उलझन में पड़े महाराज दरबार में आए।

उन्हें चिन्तित देखकर दरबारियों ने पूछा -” क्या बात है महाराज ? आप कुछ चिन्ता में हैं ?”

महाराज ने कहा-“एक सवाल मेरे मन में उमड़-घुमड़ रहा है कि क्या स्वर्ग से कोई पत्र मृत्युलोक में आ सकता है ?”

दरबारियों में बैठा हजाम बोला -” क्यों नहीं महाराज ! स्वर्ग लोक में देव योनि है जिसके लिए कुछ भी सम्भव है।”

गोनू झा से खार खाए दरबारियों ने हजाम को हर तरह का सहयोग देने का वचन दिया था इसलिए उन लोगों ने समवेत स्वर में कहा -”सम्भव है! सम्भव है !”

तब महाराज ने समाधि पर पत्र मिलने की घटना दरबार में सुनाई और अपने पिता का पत्र भी पढ़कर सुनाया । गोनू झा समझ गए कि वे बुरी तरह फंस गए हैं इसलिए उन्होंने खुद ही उठकर कहा-“महाराज, मैं स्वर्गारोहण के लिए तैयार हूँ । मगर मुझे तीन माह का समय चाहिए।”

महाराज मान गए । तीन माह के बाद गोनू झा पूर्वी श्मशान के टीले पर पहुँचे। उन पर पुआल लादा गया और आग लगा दी गई। आग तीन दिनों तक सुलगती रही। लोगों ने मान लिया कि गोनू झा का स्वर्गारोहण हो गया है। दरबारी खुश थे किन्तु महाराज दुखी।

इस घटना के ठीक तीन माह बाद महाराज के दरबार में गोनू झा ने मुस्कुराते हुए प्रवेश किया । सभी आश्चर्यचकित रह गए। महाराज चौककर सिंहासन से उठ खड़े हुए कि कहीं वे स्पप्न तो नहीं देख रहे !

लेकिन गोनू झा का आना सच था, सपना नहीं । गोनू झा ने ऊँची आवाज में कहा-“महाराज की जय हो ! स्वर्ग में आपके पिता कुशल हैं और उन्होंने मुझे इस पत्र के साथ धरती पर भेज दिया है।”

महाराज ने पत्र लिया और ऊँची आवाज में पढ़ने लगे ताकि दरबारी भी बड़े महाराज के पत्र का विवरण जान लें । महाराज पढ़ रहे थे – पुत्र । गोनू झा ने मुझे पूजन -कार्य के नियम सिखला दिए हैं इसलिए उसे मैं वापस भेज रहा हूँ। स्वर्ग में देवगणों को दाढ़ी बनाने की जरूरत नहीं पड़ती इसलिए यहाँ नाई नहीं हैं । मेरी दाढ़ी और मेरे बाल बढ़ गए हैं । तुम अपने दरबार से हजाम को उसी विधि से स्वर्ग भेजो जिस विधि से गोनू झा को भेजा था । तुम्हारा पिता ।

दरबार में सन्नाटा छा गया । हजाम की हालत खराब थी । वह अपने आसन से उठा और घरबराते हुए महाराज के पास पहुँचकर कहने लगा-“महाराज ! यह झूठ है । आप कृपा कर मेरी बात सुनिए । गोनू झा वाला पत्र स्वर्ग से नहीं आया था । उसे मैंने ही लिखा था । मेरी गलती माफ कीजिए। मेरी जान बख्श दीजिए।”

महाराज किंकर्तव्यविमूढ़ से थे। तभी गोनू झा ने कहा -” महाराज! यह सही कह रहा है । मैंने वह पत्र देखते ही समझ लिया था कि मेरे विरुद्ध षड्यंत्र रचा गया है। इसलिए ही मैंने तीन माह का समय आप से लिया था और तीन महीनों में मैंने अपने कमरे से श्मसान के टीले तक की एक सुरंग खोद ली थी । जब लोग मुझ पर पुआल डाल रहे थे तब मैं सुरंग से उतरकर अपने कमरे में चला आया था और तीन माह तक अपने घर में ही रहा ।”

महाराज बहुत क्रोधित हुए और कहा-” हजाम की इस दुष्टचेष्टा के लिए इसे फाँसी पर लटकाया जाना चाहिए।”

तब हजाम ने गोनू झा के पाँव पकड़ लिए और उनके सामने गिड़गिड़ाने लगा । तब गोनू झा ने महाराज से अनुनय कर उसे प्राणदंड से मुक्ति दिलाई मगर महाराज ने हजाम को कारागार में डलवा दिया ।

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