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किस्से कहानियाँ

अय्यप्पन का अवतार हिन्दी कहानी Ayyappan Ka Avtar Story in Hindi

अय्यप्पन का अवतार हिन्दी कहानी Ayyappan Ka Avtar Story in Hindi

बहुत समय पहले की बात है। केरल राज्य के पन्‍नलम नामक स्थान पर एक दयालु राजा का राज्य था। उनकी प्रजा खुशहाल थी। राज्य में किसी भी वस्तु का अभाव न था। प्रजा अपने राजा की जय-जयकार करती। परंतु इतना सब होने पर भी राजा दुखी था।

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उसके घर में कोई संतान न थी। जब वह अपने दास-दासियों को उनके बच्चों के साथ हँसते-खिलखिलाते देखता तो उसका मन उदास हो जाता।

एक बार वह शिकार खेलने जंगल में गया। गहरे सन्‍नाटे के बीच किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। कुछ ही समय बाद रोना थम गया परंतु राजा जानना चाहता था कि घने जंगल में छोटा बच्चा कहाँ से आ गया?

वह घूमते-घूमते एक झोपड़ी के बाहर जा पहुँचा। गोल-मटोल नन्हा-सा शिशु टोकरी में पड़ा था। राजा ने उसे गोद में उठाकर पुचकारा तो वह हँस पड़ा। राजा ने तो मानो नया जीवन पा लिया।

वहीं समीप ही एक व्यक्ति ध्यान में लीन था। आँखें खोलकर उसने राजा से कहा- ‘महाराज, यूँ तो यह हमारा पुत्र है परंतु मैं चाहता हूँ कि आप इसे गोद ले लें। मैं और मेरी पत्नी संन्यास लेना चाहते हैं।’

नन्‍हें शिशु ने राजा का मन मोह लिया था। उसने बच्चे को छाती से लगाया और चल पड़ा। पीछे से उस व्यक्ति का स्वर सुनाई दिया- ‘यह बच्चा, भगवन्‌ शास्ता का अवतार है। बड़ा होकर धर्म की रक्षा करेगा।’

अय्यप्पन का अवतार हिन्दी कहानी Ayyappan Ka Avtar Story in Hindi

राजा ने इस बात को ओर अधिक ध्यान न दिया। महल में खुशियाँ-ही-खुशियाँ छा गईं। बालक का नाम अय्यप्पन रखा गया। रानी माँ भी बालक अय्यप्पन के पालन-पोषण में कोई कमी न आने देतीं।

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राजा-रानी का अय्यप्पन के प्रति प्रेम देखकर मंत्री ईर्ष्या से जल-भुन गया। सब कुछ तय था। राजा का कोई पुत्र न होने के कारण राज्य तो उसी के पुत्र को मिलना था परंतु अय्यप्पन के आ जाने से सब गड़बड़ हो गई।

मंत्री सदा अय्यप्पन को जान से मारने की योजनाएँ बनाता रहता। एक बार रानी माँ बीमार पड़ीं। मंत्री को एक उपाय सूझ गया। उसने एक नकली वैद्य महल में भेजा, जिसने कहा-

‘यदि रानी माँ को अच्छा करना है तो उन्हें मादा चीता का दूध पिलाया जाए।’

वैद्य की बात को कौन टालता? शीघ्र ही ऐसे साहसी व्यक्ति की खोज होने लगी, जो भयानक जानवर का दूध दुहकर ला सके।

कोई भो जाने को तैयार न था। अय्यप्पन बोला-‘पिता जी, मैं मादा चीता का दूध दुहकर लाऊँगा।’

उसकी जिद के आगे राजा की एक न चली। मंत्री का मनोरथ सिद्ध हुआ। वह प्रतिदिन अय्यप्पन की मृत्यु की प्रतीक्षा करता।

किंतु उसकी सारी योजना पर पानी फिर गया। अय्यप्पन जंगल से मादा चीता पर सवार होकर लौटा। पीछे-पीछे बहुत से शिशु चीते भी थे।

राजा अपने पुत्र के साहस को देखकर दंग रह गया। उसे अचानक याद आ गई वह बात- ‘यह बच्चा भगवान शास्ता ….’ उसने अय्यप्पन के चरण छुए। अय्यप्पन ने राजा को आत्मज्ञान का उपदेश दिया। उसने कहा कि शवरगिरी के ध्वस्त मंदिर को फिर से बनाने आया है।

शीघ्र ही अय्यप्पन ने अपने लक्ष्य में सफलता पाई और प्रकाशपुंज बनकर मंदिर की मूर्ति में समा गए।

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