अगर आपमें से किसी ने गांव में वक्त गुजारे हों तो घोंघा शब्द से परिचित होंगे. यह छोटे तालाबों-पोखरों में मौजूद होते हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांवों में तो अभी इनके पीठ वाले हिस्से को आलू की छिलनी बनाकर प्रयोग किया जाता है. इनकी खूबी यह होती है कि पीठ का हिस्सा इतना मजबूत होता है कि उस पर ईंट पत्थर पटकर दीजिए कोई असर नहीं. आप इसे कछुआ का छोटा भाई समझ सकत हैं. लेकिन अहम बात यह कि यह पूर्वी उत्तर प्रदेश से वाले घोंघा नहीं है. उनकी लंबाई चौड़ाई तो अधिकतम 2 वर्ग इंच होगी. लेकिन यह कोन घोंघा 6 से 10 फीट तक के होते हैं. किसी अनजान जगह पर इनसे आपका सामना हो गया तो समझिए कि आप एक बड़ी परेशानी में फंस चुके हैं. इनके शरीर में इनके मुंह वाले हिस्से में बहुत जबर्दस्त तरीके से पकड़ने की क्षमता होती है. आगर आपको पकड़ लिए तो छुड़ाने के लिए इनके शरीर को तोड़ना पड़ेगा. स्वतः एक बार शिकार पकड़ने के बाद यह नहीं छोड़ते आपको इनके शरीर को काटना पड़ेगा जो मुश्किल ही नहीं नामुमकिन जैसा है!
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