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योग का ये सिद्धांत गलत है

संत अष्टावक्र का उदाहरण प्रस्तुत कर विवेक देसाई आत्मा की श्रेष्ठता और प्रेम के साथ कार्य करने की आवश्यकता पर बात करते हैं।आज अगर आप सर्वे करें और लोगों से पूछें, “योग क्या है?” तो अधिकतर लोगों का जबाव योग के बारे में शरीर से जुड़ा होगा। कुछ श्वसन क्रिया के बारे में कहेंगे और कुछ प्राण यानि जीवन शक्ति के बारे में। लेकिन योग अगर केवल शरीर और श्वसन क्रिया के बारे में है तो अष्टावक्र क्यों हैं, जिनका शरीर आठ स्थानों पर मुड़ा हुआ था और जो महान योगियों में से एक माने जाते हैं? ऐसी शारीरिक अवस्था में वो किसी भी प्रकार से शरीर के किसी आसन या श्वसन तकनीक को करने में सक्षम नहीं होंगे, जिसे आज योग के समान समझा जाता है।

तो वास्तव में योग क्या है? इस दृश्य की कल्पना कीजिए। एक बारह वर्षीय लड़का जो शारीरिक रूप से विकलांग है और एक गरीब परिवार से है, राजा के महल जाता है। वह राजा से उस समय के सभी अग्रणी विद्वानों के साथ और राजा के सभी दर्शको के साथ बातचीत करने की अनुमति मांगता है। राजा को छोड़ सबलोग उसपर हंसने लगते हैं। लड़का जबाव में कहता है, “मैंने सोचा कि मैं बुद्धिमानों की सभा में आया हूं लेकिन यह सभा तो प्रतीत होती है….” यह लड़का कोई और नहीं बल्कि संत अष्टावक्र थे जिन्होंने राजा जनक को ‘किसी व्यक्ति की पहचान की प्रकृति’ के बारे में शिक्षित किया था। यह कहानी हमें योग का अर्थ समझने में मदद कर सकता है।

  • हम प्रेम हैं

संस्कृत शब्द ‘योग’ का अर्थ है ‘जुड़ना’ या ‘संबंध स्थापित करना’ और यह होता है किसी और से मिलने से। शुरुआत में राजा उस युवा लड़के से खुद को जोड़ने में असमर्थ था। इसका कारण स्पष्ट था। राजा उनकी बाह्य रूपरेखा, उम्र, उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति से उनकी पहचान कर रहा था और इन सबकी तुलना में वो कहीं अधिक सक्षम, परिपक़्व, धनवान और ज्ञानी था। उसके लिए ये सारी चीजें उन दोनों के बीच की एक बड़ी गहरी खाई थी और इस कारण वह अपनी और उनकी आत्मिक या भौतिक मुलाकात को नहीं देख पा रहा था। वहीं दूसरी ओर अष्टावक्र ने दूसरों को अलग ढ़ंग से देखा। वो जानते थे कि राजा और उसके देशवासी उसे एक विदेशी की नजर से देख रहे हैं और इसलिए वो सारे लोग खुद को उनसे जोड़ नहीं पा रहे हैं। वो इसका कारण भी समझ गये। अष्टावक्र भी राजा और खुद के बीच की उस गहरी खाई को देख सकते थे। राजा स्वयं से अलग नहीं था और यही चीज अष्टावक्र ने देखी। लेकिन अब अगला सवाल यह आता है कि उन्होंने खुद को किस तरह से देखा? अष्टावक्र ने खुद की शारीरिक अवस्था उससे अलग देखी, सामाजिक स्तरीकरण में खुद की स्थिति अलग देखी और उन्होंने अपने दिमाग में इससे जुड़ी जानकारी इकठ्ठी कर ली। उन्होंने महसूस किया कि जब उन्होंने खुद से प्यार किया तो उन्हें संतुष्टि महसूस हुई। इसलिये उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि उनकी वास्तविक प्रकृति (और अन्य लोगों की प्रकृति) प्रेम है।

  • मतभिन्नता की जड़

भक्ति सूत्र की परिभाषा के अनुसार प्रेम ‘अमरत्व की प्रकृति’ है और इसका अर्थ है कि प्रेम डर को खत्म करता है। जीवन की यह समान्य सी समझ ने अष्टावक्र को अपने आस-पास के लोगों से खुद को जोड़ने में सक्षम बनाया, यहां तक कि उन लोगों से भी जो उनका मजाक उड़ा रहे थे। वो समझ गये थे कि वो लोग जो उनका मजाक उड़ा रहे हैं, उनका उनसे कोई लेना-देना नहीं है। वो लोग बस उन्हें छोटा या कमतर समझकर अपना डर दबाने की कोशिश कर रहे हैं। वो लोग बीमारी (डर) के लिए गलत दवा (निर्णय) ले रहे थे।

यह प्रकरण इस बात पर प्रकाश डालता है कि दूसरों का निर्णय दो इंसानों या चीजों के बीच दरार का कारण बनता है। दूसरों का निर्णय का अर्थ है किसी को उसकी उपस्थिति, व्यक्तित्व और प्रतिष्ठा के आधार पर परिभाषित करना। यही सभी मतभेदों का कारण है। ये सारी चीजें किसी के निर्णय को प्रभावित करने के लिए नहीं होनी चाहिए बल्कि ये सारी चीजें उन्हें रोजाना के कार्यों के प्रति जागरूक करने के लिए होनी चाहिए।

  • हृदय को विशाल करें

हालांकि जब हम किसी को देखकर उसकी पहचान को परिभाषित करते हैं तो इससे मतभेद का जन्म होता है। अगर हम किसी और को अलग नजर से देखें या अंतर करें तो उससे खुद को जोड़ना और अधिक मुश्किल हो जाता है। दूसरों के प्रति राय कायम करने से दो लोगों के बीच एक दीवार खड़ी हो जाती है और एक-दूसरे को स्वीकार करने के लिए एक पुल का निर्माण करना पड़ता है। शनिवार की सुबह को योग कक्षा में शरीर को स्ट्रेच करना आसान है लेकिन जीवन की दैनिक परिस्थितियों में हृदय को विशाल बनाना आसान नहीं है और मुख्य रूप से तब, जब आप जानते हैं कि सामने वाला आपको गलत तरीके से ले रहा है।

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