होलिका का दहन पूर्ण चंद्रमा के दिन ही होता है। इस दिन सायंकाल को होली जलाई जाती है। एक माह पूर्व अर्थात् माघ पूर्णिमा को ‘एरंड’ या गूलर वृक्ष की टहनी को गाँव के बाहर किसी स्थान पर गाड़ दिया जाता है, और उस पर लकड़ियाँ, सूखे उपले, खर-पतवार आदि चारों से एकत्र किया जाता है और फाल्गुन पूर्णिमा की रात…
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