सृष्टि से पूर्व दिव्य गो लोक धाम में निरंतर रास-विलास करते-करते एक बार श्री राधा जी के मन में एक पुत्र पैदा करने की इच्छा हुई। इच्छा होते ही पुत्र की उत्पति हुई। परम सुंदरी का पुत्र भी परम सुंदर हुआ। एक दिन उस पुत्र ने जम्हाई ली। उस के पंच भूत, आकाश, पाताल, वन, पर्वत,वृक्ष, अहंतत्व, अहंकार, प्रकृति, पुरुष सभी दिखाई दिए। उसके मुख में यह सब देख कर सुकुमारी श्री राधा रानी को बड़ा बुरा लगा। उन्होंने मन ही मन सोचा कैसा विराट बेटा हुआ है? उन्होंने उसे जल में रख दिया। वही बेटा विराट पुरुष हुआ। उसी से समस्त ब्रह्मांड की उत्पति हुई।
राधा रानी का अपने पुत्र के प्रति ऐसा व्यवहार देख कर श्री कृष्ण ने राधा रानी को श्राप दिया,” अब भविष्य में तुम्हें कभी संतान होगी ही नहीं। “तभी तो राधा रानी का नाम कृशोदरी पड़ा। इनका पेट कभी बढ़ता ही नहीं।