साई बाबा संत थे या भगवान, यह सवाल भले ही उठाया जा रहा हो, आस्था का कोई जवाब नहीं। लेकिन क्या आपने कभी सुना हैं कि कुतिया का भी मंदिर हैं जहां सिर्फ कुतिया की पूजा होती है। झांसी से 65 किमी दूर मऊरानीपुर इलाके में रेवन और ककवारा गांव हैं जहां पर ये मंदिर स्थित है। वहां स्थानीय निवासीयों को कहना हैं कि जहां स्थान पर जहां वो मंदिर हैं।
वही पर उस कुतिया की मृत्यु हुई थी और बाद में जब लोगों ने उसे उसी जगह दफनाया तो दफनाया गया स्थान पत्थर का हो गया। इलेक्शन के दौरान आते जाते लोग भी मंदिर के सामने दो मिनट के लिए रुक कर सिर झुकाते है। कुतिया को धैर्य का प्रतीक माना जाता है।
यहां रहने वाली महिलाएं इस मंदिर में जल चढ़ाती हैं और उनकी पूजा रचना करती हैं और हैरत की बात तो ये हैं कि यहां पर लोग इस मंदिर पर स्थित कुतिया को कुतिया महारानी के नाम से भी जानते हैं। मंदिर के चबूतरे पर काले रंग की कुतिया की मूर्ति लगाई गई हैं जिसे लोग कुतिया देवी के नाम से जानते है। काफी समय पहले एक दिन ही दोनों गांवों में दावत थी। दावत के दौरान रमतूला बजाया जाता था। जिससे लोगों को पता चल जाता था कि दावत शुरू हो गई। दौरान रेवन गांव से रमतूला बजा और कुतिया वहां पहुंची। लेकिन तब तक वहां पहुंची दावत खत्म हो गई। थोड़ी देर में ककवार गांव से रमतूला बजा लेकिन वहां भी वहीं हुआ। कुतिया बीमार और भूखी थी। दोनों गांवों के बीच दौडऩे के कारण वह थक कर बीच में बैठ गई। भूख और बीमारी के कारण वहीं उसकी मौत हो गई थी।